रंजना ने अपनी
किताबों को
कसकर सिने से लगा लिया था जहां उसका दिल तूफान मचाए हुआ था। उसके
खुद के कदम आज उसके बस मे नहीं थे। ज्यों ज्यों फासला कम हो रहा था दोनों अपने
दिलोदिमाग से कंट्रोल खोते जा रहे थे। सलभर से सिने मे दबे अरमान आज मचलकर जुबान
पे आना चाहते थे। भानु रंजना के पास पहुँचकर साइकिल से उतरना चाहता था मगर उधर
दुर्गा का भाई पास आ चुका था।
“रंजना !”, भानु ने रंजना के पास से गुजरते हुये धीरे से कंपकपाती आवाज मे
कहा ताकि दुर्गा का भाई न सुन सके।
“ऊँ” , ‘रंजना ने मुस्कराते हुये भानु की तरफ देखकर कहा।
आज वो भी भानु से
बहुत कुछ कहने के लिए उदिग्न लग रही थी। दोनों एक दूसरे के मन की बात अपनी जुबां
से कहने
और कानो से सुनने को लालायित थे। दिल की बात जब जुबां पे आ जाए
तो वो प्यार की पूर्ण सहमति बन जाती है। दिल के सभी संशय खत्म हो जाते हैं और
प्यार मे प्रगाढता आती है।
आज इतने पास से उन दो
जोड़ी आंखो ने एक दूसरे मे झाँककर देखा था। मगर पलभर का वो मिलन तुरंत जुदाई मे
बदल गया था। भानु अपनी उसी गति से रंजना के पास से गुजर गया और उधर रंजना पीछे
मुड़कर उसे देखती रही। तभी रंजना ने भी देखा की दुर्गा का भाई आ रहा है तो वो भी
पलटकर तेज़ तेज़ कदमों से अपने घर की तरफ चल पड़ी।
शाम को घर पहुँच भानु
ने अपना समान बैग मे ठुँसा और जल्दी से स्टेशन के लिए निकल गया। ट्रेन आने मे बहुत
कम समय बचा था। एक बार उसने रंजना के घर की तरफ जाने का सोचा मगर वक़्त की कमी से
दिल मसोस कर रह गया। रह रहकर वो पीछे मुड़कर उस रास्ते को देखता रहा जहां से रंजना
गुजरती थी। आज वो अपने दिल की बात कहें से चूक गया था। उसका संकोची स्वभाव आज फिर
उसके आड़े आ गया था। लेकिन गाँव से आने के बाद वो इस अधूरे काम को जरूर
अंजाम तक पहुंचाकर रहेगा। वो रंजना से अपने प्यार का इज़हार जरूर करेगा। इसी कशमकश
मे स्टेशन पहुँच गया। उसने जल्दी से टिकिट खरीदा और भारी कदमों से ट्रेन की तरफ
बढ़ गया। उसे अपने भीतर कुछ खाली खाली सा लग रहा था। उसका गला रुँधा हुआ था। वो
अपने भीतर एक तड़प सी महसूस कर रहा था। उसे रंजना से जुदाई सहन नहीं होती थी ,
मगर वो जल्दी वापिस आएगा ये सोचकर उसने अपने दिल को समझाने की व्यर्थ सी कोशिश की।
ट्रेन पटरियों पे रेंगने लगी थी और उसके साथ ही भानु के चेहरे पे उदासी और गहरी
होने लगी। वो ट्रेन की खिड़की से बाहर का दृश्य देख अपने दिल मे उढ़ते भावों को
भटकाने की कोशिश करने लगा। रात धीरे धीरे गहराने लगी थी। क्षितिज का पर्दा चीरते
हुये चाँद भी निकल आया था और अब धीरे धीरे खुले आसमान मे विचरण करने लगा था। उसकी
चाँदनी उसके गलबहियाँ डाल उसे अपने आगोश मे लेने लगी,
चाँद इस प्रेमपाश मे बंध कर मंद मंद मुस्कराने लगा। भानु का गला रुँध गया और उसकी
आंखो मे पानी भर आया था। पटरियों पे दौड़ती ट्रेन पल पल किसी को किसी की अमानत से
दूर बहुत दूर ले जा रही थी।
अगली सुबह भानु अपने
गाँव पहुंचा। भानु के पिता खेती बाड़ी करते थे। भानु जब गाँव के स्कूल मे पड़ता था
तो वो अपने पिता के काम मे हाथ बँटाता था । उसका छोटा सा परिवार था,
जिसमे वो, उसका बड़ा भाई विजय और उनके माता पिता थे। विजय
अपने बीवी-बच्चे साथ रखता था। घर पहुँचने के कुछ देर बाद भानु गाँव मे अपने
दोस्तों से मिलने निकल गया। दिन मे कई बार उसे रंजना की याद आई। उसको याद करते
करते वो शून्य मे कहीं ताकने लगता ,कभी मुस्कराने लगता तो
कभी मन ही मन कुछ बुदबुदाने लगता। दीवानगी सिर चढ़कर बोल रही थी
दिनभर बाहर रहने के बाद वो शाम को घर आया तो खाना खाने के बाद
उसे पिता से उसे बाहर वाले कमरे में अपने पास बुलाया। कमरे मे हल्का अंधेरा था, मगर सामने के मकान मे जलती लालटेन की हल्की रोशनी कुछ हद तक अंधेरे पे
काबू पाने की कोशिश कर रही थी। कमरे मे घुसते ही सामने पलंग पर भानु के पिता बैठे
हुक्का गुडगुड़ा रहे थे।
“पिछले महीने विजय छुट्टी
आया था”, कुछ देर इधर उधर की बातें और फिर एक लंबी खामोशी
के बाद भानु के पिता ने उससे कहा।
“हाँ, भैया बता रहे थे”, भानु ने जवाब दिया।
भानु की माँ चुप चाप
दोनों बाप बेटों की बाते सुन रही थी। उनकी खामोशी और हाव-भाव से लगता था की क्या
बातें होने वाली हैं एसलिए वो चुप थी।
“तुम्हें पता है विजय ने
हमसे अलग होने का फैसला कर लिया है। ?”, भानु के पिता
कहा।
“अब तुम भी बेटे अपने बापू
के काम मे हाथ बटाओं, इधर ही पढ़ लेना”, उसकी माँ ने कहा।
भानु भारी कदमों से
कमरे से बाहर निकला और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। उसके पीछे पीछे उसकी माँ भी
लालटेन हाथ मे लिए रसोई की तरफ चल पड़ी। उसके पिता ने हुक्के का आखिरी कश खींचा और
पैर फैलाकर सोने का प्रयत्न करने लगे। उधर भानु रातभर करवटें बदलता रहा। नींद का
नामोनिशान नहीं था। आज घर के तीनों सदस्य विषाद मे डूबे आने वाली सुबह का इंतजार
कर रहे थे। भानु रातभर रोता रहा। रंजना का चेहरा रह रहकर
उसकी आंखो मे सामने आ रहा था। वो रुआंसी सूरत लिए उससे पूछ रही थी ,”क्यों छोड़ कर आगये मुझे?, क्यों नहीं बात की
मुझसे?”। सुबह भानु के चेहरे से लगता था की उसकी रात
कितनी वेदनाओं मे गुजरी थी।
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