3 Oct 2012

खामोश लम्हे..3


जैसे तैसे करके दिन बिता, भानु दिनभर उस खिड़की की तरफ जाते वक़्त अपने आप को छुपाता रहा और अगली दोपहर कॉलेज के लिए निकलने से पहले सहसा उसकी नजर पीछे के उस दरवाजे पे पड़ी । दरवाजा बंद देखकर उसने राहत की  सांस ली। मकान से उसके कॉलेज का रास्ता  कॉलेज का पहला दिन मात्र ओपचारिकताओं भरा रहा , पढ़ाई के नाम पे सिर्फ टाइम-टेबल मिला। उसके कॉलेज का समय दोपहर एक से पाँच बजे तक था। दिनभर रह रहकर उस लड़की का ख्याल भी उसकी बैचेनी बढ़ाता रहा।

शाम को मकान में आते ही उस लड़की का ख्याल उसे फिर बैचेन करने लगा। वो सोचता रहा की आखिर वो किस बात पे नाराज हो गई ? क्यों उसने उसकी तरफ बुरा सा मुह बनाया ? क्या उसे मेरा उसकी तरफ देखना अच्छा नहीं लगा ? मगर देख तो वो रही थी मुझे। रसोई मे आते जाते भानु उड़ती सी नजर उस दरवाजे पे भी डाल रहा था जो बंद पड़ा था । बिना किसी काम के रसोई मे चक्कर लगाते लगाते अचानक वह ठिठक कर रुक गया। दरवाजा खुला पड़ा था, मगर वहाँ कोई नहीं था। भानु की नजरे इधर उधर कुछ तलाशने लगी। सहमी सी नजरों से वो खुले दरवाजे को देख रहा था। फिर अचानक उसकी नजर दरवाजे के पास दाईं तरफ बने टीन की शैडनुमा झोंपड़ी पर गई जिसमे एक गाय बंधी थी, और वो  लड़की उस गाय का दूध निकाल रही थी। भानु कुछ देर देखता रहा। हालांकि लड़की की पीठ उसको तरफ थी, इसलिए वो थोड़ा निश्चिंत था। साथ साथ वो सामने के बाकी अपार्टमेंट की खिड्कियों पर उड़ती सी निगाह डालकर निश्चिंत होना चाह रहा था की कहीं कोई उसकी इस हरकत को देख तो नहीं रहा। चहुं और से निश्चिंतता का माहौल मिला तो नजरे फिर से उस लड़की पे जाकर ठहर गई जो अभी तक गाय का दूध निकालने मे व्यस्त थी। यकायक लड़की उठी और दूध का बरतन हाथ मे ले सिर झुकाये अपने दरवाजे की तरफ बढ़ी। भानु की नजरे उसके चेहरे पे जमी थी। वह सहमा सहमा उसे दरवाजे की तरफ बढ़ते हुये देखता रहा। वो आज अपने चेहरे के भावों के माध्यम से उस से कल की गुस्ताखी के लिए क्षमा मांगना चाहता था। लड़की दरवाजे मे घुसी और पलटकर दरवाजा बंद करते हुये एक नजर भानु की खिड़की की तरफ देखा। नजरों मे वही अजनबी बर्ताव जो पहली मुलाक़ात मे था। भानु उसके इस तरह अचानक देखने से सकपका गया और उसकी पूर्व नियोजित योजना धरी की धरी रह गई। लड़की को जैसे पूर्वाभास हो गया था की भानु उसे देख रहा है। नजरे मिली ! भानु की धड़कने अपनी लय ताल भूल गई थी । वह सन्न रह गया था,उसने सोचा भी नहीं था को वो अचानक उसकी तरफ देखेगी। सिर्फ दो पल ! और फिर लड़की ने निर्विकार  भाव से  दरवाजा बंद कर दिया। भानु की नजरे उसका पीछा करते करते बंद होते दरवाजे पे जाकर चिपक गई। अंत मे उसने चैन की एक ठंडी सांस ली और वापिस कमरे मे आकर धड़कते दिल को काबू मे करने की कोशिश करने लगा। इन दो  हादसों ने उसके युवा दिल मे काफी उथल-पुथल मचा दी थी। उसके दिमाग  मे अनेकों सवाल उठ रहे थे और उसका दिल उनका जवाब भी  दे रहा था मगर सिलसिला अंतहीन था।  एक नया एहसास उसे अजीब से रोमांच की अनुभूति से सरोबर किए जा रहा था।  भानु को अजीब सी कशमकश महसूस हो रही थी। बावजूद इसके बढ़ती हुई बैचेनी भी उसके दिल को सुकून पहुंचाने मे सहायक सिद्ध हो रही थी। ये सब अच्छा भी लग रहा था। दिमाग मे विचारों की बाढ़ सी आ गई थी। कभी गंभीर तो कभी मुस्कराते भावों वाले विचार मंथन की चरम सीमा को छु रहे थे।  खुद के विचार खुद से ही आपस मे उलझ कर लड़ते झगड़ते रहे। दिवाने अक्सर ऐसे दौर से गुजरते हैं। खुद से बातें करते और उमंगों के हिचकोले खाते कब उसकी आँख लग गई पता ही नहीं चला।

अगली सुबह जल्दी जल्दी नाश्ता खतम कर वो चाय का कप हाथ मे ले अपने चिरपरिचित स्थान पे खड़ा हो गया। एक दो बार उड़ती सी नजर उस दरवाजे पे डालता हुआ चाय की चुसकियों के बीच आस-पास के माहौल का जायजा लेने लगा।  लड़की के चेहरे के कल के भाव संतोषजनक थे। वो सायद अब गुस्सा नहीं है , या हो सकता है ये तूफान से पहले की खामोशी हो। इस कशमकश में उसकी उलझने और बढ़ती जा रही थी और साथ ही इंतजार की इंतहा मे उसकी मनोदशा भी कोई खास अच्छी नहीं कही जा सकती थी।  अचानक दरवाजा खुला! लड़की ने झट से ऊपर देखा..., नजरें मिली..., भानु स्तब्ध रह गया! एक पल को जैसे सब कुछ थम सा गया। मगर दूसरे ही पल लड़की ने बाहर से दरवाजा बंद किया और सीने से किताबें चिपकाए सड़क पे गर्दन झुकाये हुये एक और जाते हुये दूर निकल गई । भानु देर तक उसे जाते हुये देखता रहा । भानु उसके ऐसे अचानक देखने से थोड़ा सहम गया रहा था मगर दिल उसके डर पे हावी हो रहा था। पिछले दो चार दिनों मे उसने जितने भी अनुभव किए उनका एहसास उसके लिए बिलकुल नया था। वो चली गई मगर भानु के लिए न सुलझा सकने वाली पहेली छोड़ गई जिसे वो सुलझाने मे लगा था।  

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   (  विक्रम  सुरतगढ़  रंजना  )

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