3 Oct 2012

खामोश लम्हे..4


दोपहर अपने कॉलेज के लिए जाते हुये पूरे रास्ते वो उसी के बारे मे सोचता रहा । कॉलेज पहुँचकर भी उसका मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था । जैसे तैसे कॉलेज खतम हुआ और उसको तो जैसे पंख लग गए। जल्दी से अपने क्वार्टर मे पहुंचा और खिड़की से बाहर झाँककर उसकी मोजूदगी पता की। मगर निराशा ही हाथ लगी । दरवाजा बंद था । एक के बाद एक कई चक्कर लगाने के बाद भी जब दरवाजे पे कोई हलचल नई हुई तो भानु भारी मन से कमरे मेँ जाकर लेट गया ।    
लेकिन उसका दिल तो कहीं और था , बैचेनी से करवटें बदलता रहा, और अंत मे खिड़की के पास आकर खड़ा हो गया। पूरे मकान मे वही एक जगह थी जहां उसकी बैचेनी का हल छुपा था। वहाँ खड़े होकर उसे भूख प्यास तक का एहसास नहीं होता था। अंधा चाहे दो आंखे। फिर आखिरकार दीदार की घड़ी आ ही गई। दरवाजा खुला... भानु संभला.....  और दरवाजे की तरफ उड़ती सी नजर डालकर पता करने की कोशिश करने लगा को कौन है। मुराद पूरी हुई। लड़की हाथ मे बाल्टी थामे बाहर आई ... और सीधी दाईं और टीन के शैड मे बंधी  गाय का दूध निकालने लगी । भानु आस पास के मकानों की खिड़कियों पे सरसरी सी नजर डालकर कनखियों से उस लड़की को भी देखे जा रहा था। भानु को उसे देखने की ललक सी लग गई थी, जब तक उसको देख नहीं लेता उसे कुछ खाली खाली सा लगने लगता। सायद प्यार की कोंपले फूटने लगी थी। लड़की अपनी पूरी तल्लीनता से अपने काम मे मग्न थी। कुछ समय पश्चात लड़की उठी... घूमी... और दूध की बाल्टी को दोनों हाथो से दोनों घुटनो पे  टिका झट से ऊपर  भानु की तरफ शिकायत भरे लहजे मे ऐसे देखने लगी जैसे कह रही दिनभर घूरने की सिवा कोई काम नहीं क्या?”। भानु झेंप गया, और दूसरी तरफ देखने लगा। लड़की उस झोपड़ी में अंदर की तरफ ऐसे खड़ी थी की वहाँ से उसे भानु के सिवा कोई और नहीं देख सकता था, मगर भानु जहां खड़ा था वो जगह उतनी सुरक्षित नहीं थी की बिना किसी की नजरों मे आए उसे निश्चिंत होकर निहार सके। मगर फिर भी वो पूरी सावधानी के साथ उसकी तरफ देख लेता था, जहां वो लड़की उसे अपलक घूरे जा रही थी , जैसे कुछ निर्णय ले रही हो। उसके चेहरे के भावों से लग रह था जैसे कहना चाहती हो की मेरा पीछा छोड़ दो। आखिरकार भानु ने हिम्मत करके उसकी तरफ देखा .... देखता रहा..... बिना पलकें झपकाए ...... उसकी आंखो मे देखने के बाद वो दीन-दुनिया को भूलने लगा। अब उसे किसी के देखे जाने का बिलकुल डर नहीं था। लड़की अभी तक उसी अंदाज मे, बिना कोई भाव बदले भानु को घूर रही थी । करीब पाँच मिनिट के इस रुके हुये वक़्त को तब झटका सा लगा जब लड़की ने फिर से मुह बिचकाया और अपने दरवाजे की तरफ बढ़ गई । भानु घबराया हुआ उसको जाते देखता रहा और फिर लड़की ने बिना घूमे दरवाजा बंद कर दिया। भानु को उम्मीद थी की वो अंदर जाते वक़्त एक बार जरूर पलट कर देखेगी। दीवाने अक्सर ऐसी उम्मीदों के पुल बांध लेते हैं और फिर उनके टूटने पर आँसू बहाने लगते हैं। मगर वो ऐसे बांध बनाने और फिर उसके टूटने में भी एक रूहानी एहसास तलाश ही लेते हैं।
कुछ दिनों सिलसिला यूं ही चलता रहा। भानु उहापोह मे फंसा हुआ था। भानु बाथरूम की खिड़की के टूटे हुये काँच से बने छेद से आँख सटाकर ये पता करता की मेरे खिड़की पे न होनेपर भी क्या वो उसके खड़े होने की जगह की तरफ देखती है ? भानु की सोच सही निकली । वो लड़की अक्सर उड़ती सी नजर उस खिड़की पर  डालती और भानु को वहाँ न पाकर दूसरी और देखने लगती। ये सिलसिला बार बार दोहराया जाता। मगर वो छुपे हुये भानु को नहीं देख पाती थी। भानु उसकी इस हरकत पे मुस्कराये बिना न रहा , अब उसे यकीन हो गया की वो अकेला ही बैचेन नहीं है , हालात उस तरफ भी बैचेनी भरे है।  अब भानु पहले बाथरूम के होल से देखता की वो दरवाजे मे खड़ी है या नहीं, अगर वो खड़ी होती तो वह भी किसी बहाने जाकर सामने खड़ा हो जाता । कुछ देर इधर उधर देखने का नाटक  करते हुये वो एक आध निगाह दरवाजे पर भी डाल लेता, जहां वो लड़की भी उसी का अनुसरण कर रही होती थी । चारों तरफ से आश्वस्त होने के बाद भानु ने नजरे लड़की के चेहरे पे टीका दी । लड़की अनवरत उसे ही देखे जा रही थी । भावशून्य..किसी नतीजे के इंतजार मे ..... दोनो सायद मजबूर हो गए थे। दिल और दिमाग की रस्साकसी में दिल का पलड़ा निरंतर भरी होता जा रहा था। बेबस। दो युवा अपनी जवाँ उमगों के भंवर मे बहे जा रहे थे। अचानक लड़की की हल्की सी मुस्कराई... जैसे उसने हथियार डाल दिये हों और कह रही हो तुम जीते और में हारी। भानु की तंद्रा टूटी। वो अपने आप को संभालता हुआ उसकी मुस्कराहट का जवाब तलाश ही रहा था की, लड़की पलटी और जाते जाते एक और मुस्कराहट से भानु को दुविधा में डाल गई।  दरवाजा अब भी खुला हुआ था। भानु के पूरे शरीर मे रोमांच की लहरें सी उठने लगी , जीवन के पहले इजहार-ए-इश्क का एहसास उसके दिल में हिचकोले मार रहा था । वो अपने कमरे मे आया और एक ठंडी लंबी सांस खींचकर ऐसे बिस्तर पर लेट गया जैसे कोई योद्धा रणभूमि से विजयश्री पाकर लौटा हो। वो लेटे लेटे छत की तरफ देखकर मुस्कराने लगा । आज उसे अपने आस पास का माहौल कुछ ज्यादा ही बदला बदला सा लग रहा था । एक अजीब सा संगीत उसे अपने चारों और सुनाई दे रहा था। प्यार का खुमार उसके चेहरे पे साफ झलक रहा था।
 
दो दिलों मे एक मूक सहमती बन गई थी।  अब दोनों अक्सर ऐसे ही एक दूसरे को पलों ताकते रहते। हल्की मुस्कराहटें और कुछ छुपे हुये इशारे ही इनकी भाषा थे। दोनों दुनियाँ से छिप छिपाकर, दिन मे कम से कम एक दो बार तो अवश्य ही आंखो ही आँखों मे इजहार-ए-मोहब्बत कर लेते। दोनों एक दूसरे को जब तक देख नहीं लेते तब तक बढ़ी हुई आतुरता दिल मे लिए इधर उधर घूमते रहते। बस कुछ पलों का  कुछ अंजान सा मोह उन दोनों के दरम्यान पनपने लगा था , सायद उसे ही प्रेम या प्यार का नाम देते हैं। प्यार होने की कोई ठोस वजह नहीं होती और ना  ही वक़्त निर्धारण होता है। ये कहना भी मुश्किल है की कब और कोनसे पल हुआ ,क्योंकि प्यार मे वक़्त गवाह नहीं होता। अंतहीन सिलसिलों और मन के पल पल बदलते भावों से प्यार का अवतरण होता है। 
Continue...5 Next

खामोश लम्हे..1

  एक इंसान जिसने   नैतिकता की   झिझक मे अपने पहले प्यार की आहुती दे दी और जो उम्र भर  उस संताप   को   गले मे डाल...