3 Oct 2012

खामोश लम्हे..5


कभी कभार दरवाजा देर तक न खुलने से परेशान भानु अपना दरवाजा खोलकर सीढ़ियों मे  खड़ा हो जाता । अपने पड़ोसी परिवार से उसके सम्बंध अच्छे हो रहे थे। परिवार के मुखिया का नाम शिवचरण था जो उत्तरपरदेश का रहने वाला था । उसके परिवार मे दो बेटे और दो बेटियाँ थी । दोनों बड़े बेटे अपना कोई छोटा मोटा काम-धंधा करते थे और बड़ी बेटी दुर्गा घर मे माँ के कम मे हाथ बटाती थी जबकि छोटी लड़की सरोज स्कूल में पढ़ती थी । संयोगवश दुर्गा की माँ और भानु का गोत्र एक ही था एसलिए दुर्गा की माँ भानु को भाई जैसा मानती थी मगर दुर्गा अपने हमउम्र भानु को मामा का सम्बोधन नहीं देती थी । अचानक दुर्गा बाहर आई और छत की तरफ जाने वाली सीढ़ियों पे खड़ी ही गई । भानु ठीक उसके उसके सामने नीचे की तरफ जाने वाली सीढ़ियों मे खड़ा सामने दूर दूर तक फैले रेलवे पटरियों के जाल को देख रहा था ।

 आज आप कॉलेज नहीं गए” , दुर्गा ने धीरे से पूछा ।

नहीं, आज छुट्टी है ।

खाना बना लिया ?” , दुर्गा ने थोड़ी देर रुककर फिर सवाल किया।

हाँखा भी लिया।

 दोनों कुछ समय चुपचाप खड़े रहे। दुर्गा के हाथों मे कुछ गीले कपड़े थे , उनको वो सायद छत पे सुखाने ले जा रही थी।  भानु सीढ़ियों में खड़ा झरोखेदार दीवार से सामने सड़क पर खेलते बच्चों को देख रहा था। दुर्गा भी कभी भानु तो कभी सामने के बच्चों को देख रही थी। वो बात आगे बढ़ाने के लिए उत्सुक नजर आ रही थी।   

 
उसका नाम रंजना है”, अचानक दुर्गा ने कहा , और भानु के चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश करने लगी ।

किसका ?” , भानु ने लापरवाही से बिना दुर्गा की तरफ देखते हुये पूछा ।

 
वही.... जो पीछे बीब्लॉक मे नीचे वाले क्वार्टर मे रहती है”, दुर्गा ने भानु की आखों मे झाँकते हुये कहा।

 
क...कौन...”, भानु चौंकां और पलटकर कर दुर्गा की तरफ देखने लगा।
वो जिनके एक गाय भी है”, दुर्गा ने बात पूरी की और भानु की आंखो मे देखने लगी।

 
भानु उसका जवाब सुनकर सकपका गया, और हकलाते हुये बोला ,”म...मुझे तो नहीं पता, क...कौन रंजना ?, में.....में तो नहीं जानता। लेकिन मन ही मन वो रंजनाके बारे मे जानने की जिज्ञासा पाले हुये था मगर संकोचवश कुछ पूछ न सका।

 
वो आपकी तरफ देखती रहती है ना ?, दुर्गा ने प्रश्नवाचक निगाहों से भानु की तरफ देखा, ”मैंने देखा है उसको ऐसा करते”, दुर्गा ने कुछ देर रुककर कहा।

 
भानु की जुबान तालु से चिपक गई ।

 
वो बस स्टैंड के पास जो महिला कॉलेज है उसमे पढ़ती है, उसके पापा रेलवे में हैं। ये लोग पंजाबी है। दुर्गा ने सिलसिलेवार सूचना से अवगत कराते हुये बात खत्म  की और प्रतिक्रिया के लिए भानु का चेहरा ताकने लगी।

 अच्छा”, भानु ने ऐसे कहा जैसे उसे इसमे कोई खास दिलचस्पी नहीं है। मगर दुर्गा उसके चेहरे के बदलते भावों को भाप गई थी, वो भानु को सतबद्ध करके चली गई।    

 दुर्गा के इस रहस्योद्घाटन से भानु के चेहरे पे पसीने की बुँदे छलक आई थी। उसको लगा जैसे पूरी कॉलोनी को ये बात पता चल गई है और अब सभी उसकी तरफ  देख उसपे हंस रहे हैं ।

दुर्गा और भानु के क्वार्टर साथ साथ थे , उनके मुख्य द्वार एक दूसरे के आमने सामने थे। अंदर से सभी मकान एक ही डिजाईन से बने हुये थे। ऊपर जाने के लिए सीढ़ियाँ कॉमन थी।  दुर्गा ने अपने पीछे वाली खिड़की से रंजना को भानु के क्वार्टर की तरफ देखते हुये देख लिया था।

 
ऊपर से माँ की आवाज सुन दुर्गा जल्दी छत की सीढ़ियाँ चढ़ने लगी और उसके पीछे भानु लूटा पीटा सा अपने दरवाजे  की तरफ बढ़ गया । उसने सपने में भी नहीं सोचा था की, किसी को उनके बारे मे जरा सा भी इल्म होगा । एक भय सा लग रहा था की , कहीं उस लड़की के परिवार के किसी सदस्य को पता चल गया तो कितना हँगामा होगा ।

जब कभी खाना बनाने का मूड नही होता था तो भानु शाम को अक्सर बाहर पास के किसी होटल में खाने के लिए चला जाता था । आज वैसे भी दुर्गा ने उसको  अजीब उलझन में डाल दिया था । खाना खाने के बाद वो इसी चिंता में खोया हुआ वापिस अपने मकान मे आ रहा था । कॉलोनी में दाखिल होने के बाद वो अपने अपार्टमेंट के सामने वाली सड़क से गुजर रहा था की सामने से आती रंजनाको देख चौंक पड़ा । दोनों ने एक दूसरे को देखा। निगाहें टकराई। शरीर मे एक  मीठी-सी सिहरन दौड़ने लगी। निस्तब्ध ! नि:शब्द ! दो दिलों में अचानक धडकनों का एक ज्वार ठाठे मारने  लगा । उद्वेलित नजरें मिली और उलझकर रह गई । एक दूसरे के बगल से गुजरते हुये एक दूसरे के दिल की धडकनों को साफ महसूस कर रहे थे। जुबान अपना कोई हुनर नहीं दिखा पाई।  सब कुछ इतना जल्दी हो गया की जब दोनों संभले तो दूर जा चुके थे।
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