3 Oct 2012

खामोश लम्हे...6

रात मे भानु भविष्य के सपने बुनते बुनते सो गया। वो रातभर उसके ख्यालों मे खोया रहा। रंजना को लेकर उसने बहुत से ख्वाब बुन लिए थे। वह रंजना को लेकर एक कशिश सी महसूस करने लगता। रंजना का चेहरा हर वक़्त उसे अपने इर्द-गिर्द घूमता हुआ सा महसूस होता था।
 सुबह दरवाजे पर होने वाली दस्तक ने उठा दिया। देखा। उसने दरवाजा खोला तो सामने दुर्गा को खड़े पाया। ऊपर छत पे जाने वाली सीढ़ियों पे दुर्गा खड़ी थी। उसने इशारे से भानु को अपने पास बुलाया। भानु नीचे जाने वाली सीढ़ियों मे जाकर खड़ा हो गया। और प्रश्नवाचक निगाहों से दुर्गा की तरफ देखने लगा।
 रंजना ने लैटर मांगा है”, दुर्गा ने धीरे से फुसफुसाते हुये कहा।
ऊं भानु को जैसे किसी ने नंगा होने के लिए कह दिया हो।
किसने ?” , चौंक कर विस्मय से दुर्गा की तरफ देखा ।
 
उसी ने दुर्गा ने मुस्कराते हुये गर्दन से रंजनाके घर की तरफ इशारा करके कहा।
भानु के पास कहने को शब्द नहीं थे। खिसियाकर गर्दन नीचे झुकाली।
मुझे दे देना मे उसको दे दूँगी
“.....”
किसी के कदमों के आहट से दुर्गा घर के अंदर चली गई ,भानु भी अपने कमरे मे आ गया। वो सबसे ज्यादा वक़्त रसोई और कमरे के बीच आने जाने मे ही गुजारता था,क्योंकि इसी आने जाने के दरम्यान वो एक उड़ती सी नजर उसके घर के दरवाजे पे भी डाल देता था। चितचोर के मिलने पर वो खिड़की पे आ जाता, और फिर दोनों लोगों की नजरों से नजरें बचाकर नजरें मिला लेते। रंजना की तरफ से अब प्यार का मूक आमंत्रण मिलने लगा था। चिढ़ाने और गुस्सा करने की जगह पर अब हल्की मुस्कान ने डेरा जमा लिया था। उसके बाद तो ये दो दीवाने आँखों ही आंखो मे एक दूसरे के हो गए थे, बहुत से सपने पाल लिए जो बीतते वक़्त के साथ जवां होते गए।  
 
भानु का दिल करता था की रंजना से ढेर सारी बाते करे मगर उसका शर्मिला और संकोची स्वभाव उसके आड़े आ जाता था। एक दिन उसने हिम्मत करके खत लिखने की सोची। उसे ये भी डर था की कहीं वो खत किसी के हाथ ना लग जाए। लेकिन प्यार पे भला किसका ज़ोर चलता है। वो लिखने बैठ गया। बिना किसी सम्बोधन एक छोटी प्रेम-कविता लिख दी । अंत मे अपना नाम तक नहीं लिखा। दूसरे दिन चुपके से दुर्गा को दे दिया। काफी दिन बीत जाने पर मौका पाकर भानु ने दुर्गा को रंजना से भी पत्र लाने को कहा। दुर्गा ने उसे भरोसा दिलाया की वो रंजना से भी पत्र लाकर देगी । दिन बीतते गए मगर रंजना का पत्र नहीं मिला। दुर्गा का एक ही जवाब मिलता की ,”वो लिखने को कह रही थी। वक्त बीतता गया और दोनों अपने प्रेम को परवान चढ़ाते रहे। सिर्फ आँखों मे ही कसमें वादों की रश्म अदायगी होती रही। कभी सामना होने पर दोनों अंजान बन जाते और धड़कते दिलों को संभालने में ही वक़्त निकल जाता। दोनों बहुत कुछ कहना चाहते मगर दिल की धड़कने जुबान का गला दबा देती।
 भानु नहाने के बाद बनियान और हाफ-पैंट पहले अपने लिए नाश्ता बना रहा था। दरवाजे पे हल्की ठक ठक की आवाज सुन भानु ने दरवाजा खोला तो सामने दुर्गा और रंजना को देख चौंक पड़ा। धड़कने बढ़ गई। दिल मचलकर हलक मे आ फँसा।
आंखे झपकाना तक भूल गया और जिस चेहरे को देखे बिना उतावला सा रहता था वो इस वक़्त उसके सामने था। वो ही बड़ी बड़ी आंखेँ इस वक़्त मात्र एक कदम दूर से उसे देख रही थी जो आज से पहले करीब तीस से चालीस कदम दूर होती थी। दोनों इस वक्त एक दूसरे की आँखों मे डूब दिल के दरीचों तक पहुँचने का  जुगाड़ लगा रहे थे। रंजना ठीक दरवाजे के सामने और दुर्गा उसके पीछे सीढ़ियों मे खड़ी थी। भानु सामने खड़ी रंजना की गरम साँसो को अपने चेहरे पे अनुभव कर रहा था। भानु खत के इंतजार मे डूबा भानु आज रंजना को सामने पाकर बुत बन गया था। दोनों तरफ गहन खामोश मगर दिलों के तार झंकृत हो उठे। परिस्थितियां अनुकूल थी मगर दिल बेकाबू हुआ जा रहा था, जिससे आत्मविश्वास की डोर लगातार हाथ से छूट रही थी। अक्सर ख़यालों मे डींगे हाँकने वाली जुबान तालु से जाकर चिपक गई थी। भानु की वो सारी योजनाएँ पलायन कर चुकी थी जो उसने ख़यालों के परिसर मे बैठकर बनाई थी, की जब कभी सामना होगा तो वो ये कहेगी और प्रत्युतर में ऐसा कहुगा...आदि इत्यादि।  रंजना भानु की उन आंखो को देख रही थी जो उसे परेशान किए हुये थी। रंजना की नजरे कभी भानु के चेहरे तो कभी भानु के बाएँ बाजू पे बने उगते सूरज के उस बड़े से टैटू को देख रही थी जिसके बीचों बीच भानुलिखा था। दोनों सहेलियाँ आज सज धज कर कहीं जाने की तैयारी मे थी।  रंजना के हाथो मे पूजा-सामग्री रखी हुई एक थाली और दुर्गा पानी  का कलश लिए हुये थी।
 
काफी देर दुर्गा उन दोनों को देखती रही मगर जब देखा की कोई कुछ बोल नहीं रहा तो उसने रंजना के कंधे पे हाथ रखकर भानु की तरफ देखते हुए कहा।     
 
अब बात करलो दोनों”, दुर्गा ने जैसे अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हुये कहा।
 
“...ब...बात...! क्या बात”, भानु ने शरमाते हुये कहा और अपने आपको संभालने लगा।
 
रंजना खामोश मगर बिना पलक झपकाए उसे देखे जा रही थी, जिसने उसकी रातों की नींद उड़ा दी थी। दोनों आज आमने सामने खड़े होकर भी वही आँखों की भाषा ही बोल रहे थे। दोनों अपने को उसी भाषा मे सहज महसूस कर रहे थे। उन्हे जुबां पे भरोसा नहीं था।  दुर्गा एक दूसरे को देखे जा रही थी।
 आज कहीं जा रहे हो”, भानु ने रंजना के बजाय दुर्गा से पूछा।
 रंजना अभी भी भानु के चेहरे और उसके नाम के अनुरूप उसके बाजू पे गुदे सूरज के बीच मे लिखे भानुको देखे रही थी।
 
हाँ, आज रामनवमी है, इसलिए सभी मंदिर जा रही हैंबाकी लोग नीचे हमारा इंतजार कर रहे हैं। आप लोगों को जो बातें करनी है जल्दी जल्दी करलों नहीं तो कोई आ जाएगा।“, दुर्गा ने जल्दी जल्दी फुसफुसाकर कहा।
 
मगर तभी किसी ने नीचे से दुर्गा को पुकारा तो वो घबराकर रंजना का हाथ पकड़ नीचे जाने लगी। बूत बनी रंजना अभी भी बार बार पीछे मुड़कर भानु को देख रही थी। उनके जाने के बाद भानु देर तक उन्हे देखता रहा। वो आज भी कुछ नहीं बोल पाया।
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( Ranjna Suratgarh Vikram )

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