वक़्त मसलसल
गुजर रहा था ...उसका गुजरना किसी के लिए अच्छा तो किसी के लिए बुरा जरूर होता है ,
मगर उसको तो गुजरना होता सो गुजर रहा था। वो सिर्फ गुजरना जानता है लौट के आना उसे
मालूम नहीं। वो धीरे धीरे भानु के मस्तिष्क से रंजना की यादें कुरचने लगा। भानु ने
थक हार कर अपने दिल से समझोता कर लिया। वो रंजना की यादों को दिल की किसी कोने मे
छुपा, सीमा के साथ गृहस्थी की ज़िम्मेदारी निभाने लगा।
लेकिन बावजूद इसके वो कभी कभार तन्हाइयों मे, दिल मे छुपी
अपनी पहली मोहब्बत से रूबरू होता रहा। इस सबसे उसे हलकी उदासी के साथ एक रूहानी
सुकून भी मिलता था। अपने पहले प्यार को की याद में आँसू बहाना उसका प्रायश्चित था, ऐसा करने पर उसे अपने सीने से कुछ बोझ कम होता अनुभव होता था।
भानु ने सभी से अपने
प्यार को छुपा के रखा। वर्षों तक सीने मे अपनी पहली मोहब्बत की यादों की कशक लिए
फर्ज़ निभाता रहा। जिस वक़्त ने उसे उसके पहले प्यार से अलग किया उसी वक़्त ने
उसके सिर से माँ-बाप का साया तक भी छीन लिया था। बिना माँ-बाप के अब उसे घर काटने
को दौड़ता था। माँ-बाप के देहावसान के पश्चात भानु, सीमा और अपने बेटे
रंजीत को अपने साथ दिल्ली ले गया।
भानु अस्पताल के
वेटिंग हाल मे बैठा रिपोर्ट मिलने का इंतजार कर रहा था। समय के साथ उसके जेहन मे
रंजना की यादें वक़्त की धूल से सनने लगी, मगर वो उन यादों को दिल के
किसी कोने मे मरते दम तक सँजोये रखना चाहता था। आज उसका बेटा रंजीत 23 साल का हो
गया था। कद काठी और शक्ल सूरत से वो भानु को उसकी जवान अवस्था की याद दिलाता था।
उसे पिछले साल एक कंपनी मे अच्छी पोस्ट पे नौकरी मिल गई थी और उसके दो माह
बाद भानु ने रंजीत की शादी भी कर दी थी। क्योंकि उधर सीमा बीमार सी रहने लगी थी और
अब वो घर का काम बड़ी मुश्किल से कर पाती थी। शनै शनै भानु अपनी जिम्मेदारियों से
निजात पा रहा था। मगर उसे सीमा की चिंता खाये जा
रही थी।
वक़्त उसको चोट देता
और फिर खुद ही मलहम लगता। भानु इन दु:ख तकलीफ़ों को झेल कर पत्थर बन गया था। उसकी
आंखो मे अब आँसू नहीं आते थे बल्कि एक मुर्दानगी सी छाई रहती थी। सीमा की मौत के
चार साल बाद वो अपने बहू और बेटे को कहकर अपने गाँव आ गया। उसने उनको कहा की काफी
दिन हो गए गाँव में गए , घर की हालत भी पता नहीं कैसी होगी। में कुछ दिन वहाँ रुककर वापिस आ
जाऊंगा।
Continue...12 Next